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________________ (७०) तोतली बोली बोलने लगता, कभी घुटनों के बल चलता, कभी खड़ा होने का उद्योग करता पर गिर पड़ता, कभी रोने लगता, कभी हंसने लगता। इस प्रकार बहुत समय तक वह अपनी जननी को पुत्र के सुख का अनुभवन कराता रहा । फिर वह अपने असली रूप में आगया । . इतने में बल्देवजी के भेजे हुए नौकर गली में आ पहुँचे। माता को बड़ी घबराहट हुई, पर कुमार ने उसे आश्वासन दिया और शीघ्रही एक नौकर को छोड़ कर शेष को दरवाजे पर ही कील दिया । उस एक ने तुरंत जाकर बल्देवजी से रुक्मणी की मंत्र विद्या का हाल सुनाया । यह सुनते ही बल्देव जी के नेत्र क्रोध से अरुण होगए । वे स्वयं रुक्मणी के महल की ओर चले पर कुमार ने उन्हें भी एक शेर का रूप धारण कर के भूमि पर गिरा दिया और बाहर से ही वापिस लौटा दिया। * पच्चीसवां परिच्छेद * *क्मणी अपने पुत्र का पराक्रम देख कर बड़ी प्रसन्न हुई और कहने लगी हे पुत्र ! तुम मेरे निष्का* * * *रण बंधु नारदजी को कहां छोड़ आए । उन के मुझे शीघ्र समाचार सुनायो । कुमार ने उत्तर दिया, माता
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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