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र प्रस्तावना। व
प्रायः यह एक नियम है कि समय २ पर लोगों के विचार, उनकी रुचि और उनके भाव बदलते रहते हैं। जहां और विषयों में यह परिवर्तन होता है वहां साहित्य तथा पाठ्य पुस्तकें भी इस नियम से बंचित नहीं रहती। कभी किसी विषय को विस्त. रित रूप से ही पढ़ने में आनंद आता है और कभी उसी को अति संक्षेप रूप में देखने को जी चाहता है।
कुछ समय पहिले पौराणिक शास्त्रों की इतनी भरमार थी और उनके पढ़ने की इतनी रुचि और उत्कंठा थी कि पौराणिकों ने छोटी २ कथाओं को भी एक बड़े आकार में पाठकों की भेंट करना उचित समझा था, परंतु वर्तमान में प्रथम तो पौराणिक शास्त्रों पर लोगों की श्रद्धा ही नहीं रही और यदि साहित्य प्रचार के लिए अथवा कथा भाग जानने के लिए किंवा जन साधारण को पुण्य, पाप का फल दर्शान के लिए कुछ शौक़ भी है तो छोटी सी छोटी कथाओं के बड़े २ पोथों को देखकर जी घबरा जाता है । अतएव यह अत्यावश्यक है कि बड़े २ प्राचीन पुराणों को उन में से अत्युक्तियां तथा व्यर्थ के अलंकारादि आडम्बर निकालकर छोटे रूप में लाया जाए।
- इसही अभिप्राय से हम ३५० पृष्ठों के श्रीसोमकीर्ति आचार्य कृत प्रद्युम्नचरित्र को संक्षिप्त करके पाठकों की मेंट करते हैं ।