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________________ ( ४२ ) सर्वगुण निष्फल हैं । जब तक कनकमाला इन विचारों में उलझी रही, तब तक कुमार नमस्कार करके अपने महल को भी चला गया । प्रद्युम्न के चले जाने पर कनकमाला निर्लज्ज होकर नाना प्रकार की विकार चेष्टाएं करने लगी । बहुत से वैद्यों ने उसे आकर देखा परंतु कुछ फल न हुआ । उसका विरह रोग क्षण २ में बढ़ता गया । सत्रहवां परिच्छेद । ए एक दिन राजसभा में बैठे हुए राजा कालसंवर ने प्रद्युम्न कुमार से कहा, बेटा, तेरी माता रोग से अतिशय पीडित है उसके जीवन की भी आशा नहीं है, और उसके पास गया तक नहीं । कुमार ने विनय पूर्वक उत्तर दिया कि पिता जी, मैंने माता की बीमारी की बात न तो सुनी और न जानी, इसलिये नहीं गया, अभी जाता हूं। ऐसा कहकर उसी समय कनकमाला के महल की ओर चलदिया। वास्तव में माता की बुरी दशा है खाली भूमि पर पड़ी है, शरीर विरह से घायल हो रहा है । न विनय पूर्वक नमस्कार करके बैठ गया और रोग के कारण का विचार करने लगा । इतने में कामवती 1
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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