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________________ ( १६ ) योगसेसत्यभामा ने भी इसी प्रकार स्वप्न देखे और कृष्ण जी ने उसे भी इसी तरह फल सुनाया। ___ गर्भ काल के पूरे नौ मास व्यतीत होने पर शुभ तिथि और शुभ नक्षत्र में रुक्मणी के पुत्र रत्न का जन्म हुआ जिसे देख कर रुक्मणी को परम आनंद हुवा । बंधु जनों ने नौकरों को श्रीकृष्ण के पास बधाई देने के लिये भेजा । कृष्ण जी उस समय सो रहे थे । रुक्मणी के नौकर कष्णजी के चरणों के पास विनय पूर्वक खड़े होगए, इतने में सत्यभामा के नौकर भी बधाई देने को वहां आपहुँचे, परंतु वे घमंड के वश महाराज के सिरहाने खड़े हो गए । जब महाराज निद्रा से सचेत हुए तो सामने खड़े हुए नौकरों ने बधाई दी कि हे नराधीश ! आप चिरंजीव रहो, चिरकाल जयवंत रहो, महारानी रुक्मणी के पुत्र रत्न की उत्पत्ति हुई है । - यह सुनकर कृष्णजी को अपार हर्ष और आनंद हुआ। तुरंत मंत्रियों को बुलाकर हुकम दिया कि याचकों को जो वे मांगें सोदान दो, कैदियों को जेलखानों से छोड़ दो, जिनेन्द्र भगवान के मंदिरों में भक्ति भाव से पूजा विधान कराओ, और समस्त नगरी में उत्सव मनाओ । यह कह कर जो उन्हों ने अपने सिरको फिराकर सिरहाने की तरफ देखा तो सत्यभामा के नौकरों ने भी बधाई दी कि हे देव ! विद्याधरी सत्यभामा
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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