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________________ (१४) दुःख हुवा, लेखनी द्वारा उसका वर्णन करना असम्भव है । अवसर पाकर सत्यभामा ने रुक्मणी से मिलने की इच्छा प्रगट की । कृष्ण जी ने रुक्मणी को वन देवी का रूप धारण करा कर बगीचे में एक वृक्ष के नीचे मौन से बिठा दिया और सत्यभामा से कह दिया कि तुम बगीचे में जाओ, रुक्मणी पीछे से आएगी और खुद भी वहीं छिपकर बैठ गये। सत्यभामा ने उसे न पहिचान कर और साक्षात् बन देवी जानकर उसकी पूजा बंदना की और उससे वरदान मांगा कि कृष्णा जी मेरे किंकर और भक्त बन जाएँ और रुक्मणी से विरक्त होजाएँ । इतने में कृष्ण जी ने निकलकर उसकी खूब मज़ाक़ उड़ाई और खिलखिला कर हँसने लगे । सत्याभामा लज्जा के मारे ज़मीन में गड़ गई । जो कुछ बन सका उत्तर दिया परंतु इसका उत्तरही क्या हो सकता था । वह बेचारी पहिले से ही दुखी थी, परंतु अब तो उसके दुख का कोई पार न रहा। नवमा परिच्छेद * go ,त्यभामा का तमाम समय दुःख ही दुःख में वितीत होता था । कोई भी उपाय उसके शमन का न मिलता था । दैव योग से एक दिन उसे याद आया कि कृष्ण जी ने हस्तिनापुर के राजा दुर्योधन से या XXX
SR No.022753
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherMulchand Jain
Publication Year1914
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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