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________________ विपत्ति पण संपत्ति अथवा सुरखनुं कारण बने छे. १९. हे वत्स ! जो तमे तमारा मोटा भाई ने मळवाने इच्छता हो, तो दुःखी केम थाओ छो ? जाओ, हुं पापणी स्त्री कंई जई शकुं ? “२०. एवं कहीने भोजाइए मने मंत्र भणीने पलंगपर सुवाड्यो अने आ पत्र आपीने अहीं मोकल्यो. २१. " जीवंधरस्वामी पोताना भाइनां करुणाजनक वाक्योथी बहु दुःखी थया. सत्य छे, के ज्यां सुधी संसार छे, त्यां सुधी प्राणीओना स्नेहनी फांसीथी छुटको थतो नथी. २२: पछी तेमणे गंधर्वदत्ताए आपेली चीठी वांची, तेमां गुणमालानी विरह पीडानुं वृत्तान्त लखेलुं हतुं. सत्य छे, के चतुर माणस पोताना मुखथी पोताना कामनी वात कहेता नथी. बीजाना बहानाथी कही दे छे. २३. जो के ते पत्रमा जे संदेशो लखेलो हतो, ते गुणमालाना बहानाथी हतो, परंतु ते वांचीने कुमारने गंधर्वदत्ता विद्याधरीना विषयमांज खेद थयो, कारण के द्वेष अने पक्षपात प्रत्येक पात्रनी अथवा वस्तुनी अपेक्षाथी भेदरुप होय छे. २४. परंतु पोतानी स्त्रीना शोकने सांभळवाथी कुमारने जे शोक थयो, ते तेमणे प्रगट कर्यो नहि, कारण के विवेकी पुरुष सुख अने दुःखमां माध्यस्थभाव राखे छे. २५. पछी राजा दृढमित्रनां घरवाळांए पण कुमारना नाना भाई नन्दाढय साथे केटलोक वार्तालाप कर्यो- अथवा आदर सत्कार कर्यो. सत्य छ, के भाईओ भाईमां पण प्रेम त्यारेज थाय छे के ज्यारे ठगाइ रहित खरी बंधुता होय छे. २६. .
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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