SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फळे छे. ६. एटलामांज सज्जनोना सहायक जीवंधर स्वामी पासे कोइ पुरुष आव्यो, कारण के प्राणीओनी बधी प्रवृत्तिओ तेमना भाग्यानुसार थाय छे. ७. त्यारे स्वामीए पोतानी पासे आवेला ते नीच पुरुषने पूछयु,-" तुं क्याथी आव्यो, क्यां जइश अने तुं सुखी छे के नहि ? " ८. तेणे पण प्रसन्न थइने नम्रतापूर्वक उत्तर दीघोः–कारण के मोटा पुरुषनी सन्मुख बोलवू, एज नीच मनुष्यने माटे राज्याभिषेक थवा अर्थात् राजगादी मळवा समान हर्षदायक होय छे, ९. " हे पूज्य ! हुं कार्यनी इच्छाथी अहीं तहीं फर्या करूं छु. हुं सुखी छु, अने आपना दर्शनथी मारा काममां बीजं पण विशेष सुख थशे अर्थात् मारुं कार्य सफळ थशे.” १०. ए सांभळीने कुमारे फरी ते शुद्र पुरुषने कह्यु,-" हे शुद्र ! खेती वगेरे कर्मथी साचुं सुख उत्पन्न थतुं नथी. ११. असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प अने विद्या ए छ प्रकारना कामथी जे सुख उत्पन्न थाय छे, ते तृष्णानुं मूळ छे, थोडो वखत रहे छे अने ते तरतज नाश पामे छे, पाप- कारण छे, बीजानी अपेक्षा करे छे अर्थात् पराधीन छे, तेनो अंत पण खोटो छे, अने दुखथी भरेल छे. १२. वस्तुतः पोताना आत्मामांज उत्पन्न थएल स्वास्थ्य के सुखज आनन्ददायक छे. ए सुख आत्माथीज मळी शके छे, अडचण अथवा पीडा रहित छे, सर्वोत्कृष्ट, अनन्त, तृष्णारहित अने मुक्तिदायक छे. १३. ए आत्मसंबंधी परम सुख पोताना अने पारकाना भेदज्ञान, यथार्थ रुचिरुप श्रद्धान अने चारित्र
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy