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________________ साथेज मळेला रहे छे अने दुर्जनोथी दूर रहे छे. ६. __पछी जीवंधर स्वामी तीर्थस्थानोमां फरता फरता अने तेनी पूजा करता करता अनुक्रमे अरण्यना मध्य भागमां एक तपस्वीना आश्रममां पहोंच्या. ७. त्या अनुचित अने असत् तप जोईने ते तपस्वीओ उपर दया करवा लाग्या, कारण के जे लोक बधाने हितकारी होय छे, ते बधा प्राणीओ पर साची दया करे छे. ८. जेने यथार्थ ज्ञान नथी, तेना पर पण तत्त्वार्थना जाणनार दया करे छे. सत्य छे के, जे बाळक कुवामां पडवा इच्छे छे, तेनो उद्धार करवा कोण इच्छतुं नथी ? अर्थात् तेने बधाज कुवामां पडवाथी बचावे छे. ९. तत्त्वना जाणनार स्वामीए आदरपूर्वक तेमने पण यथार्थ तत्त्वनो बोध कराव्यो. सांभळनार भव्य होय के न होय, अर्थात् अभव्य होय, परंतु सज्जन पुरुषोनुं चित्त बीजानो उपकार करवा तरफज रहे छे. १०. “ तमारा वेदनुं वाक्य छे के, " मा हिंस्यात् सर्वभूतानि " अर्थात् “ कोई प्राणीनी हिंसा करशो नहि." तो पछी हे बुद्धिमानो! तमे एवं तप केम करो छो के जेनुं फळ केवळ हिंसाज छे. ११. पाणीमां नहाती वखते जे जीव वाळमां वळगे छे अने लाकडामां पडेला जीव पण जे फरी अग्निमां गरी पडे छे, तेने तमे तमारी आंखनी सामे मरता देखो छो? १२. तेथी पंचाग्नि तप कर, सर्वथा निकृष्ट अने अनुचित छे. ए तपमां जन्तुओनो वध
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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