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________________ ४५ ने प्रार्थना पण करी, परंतु तेणे स्नान कर्यु नहि. ते बहुज क्रोधमा आवीने तरतज पाछी चाली गइ, कारणके इर्ष्या स्त्रीओथीज उत्पन्न थइ छे. अर्थात् सर्वथी अधिक इर्ष्या स्त्रीओमांज होय छे. २५. फरथिी “ हुं जीवकना सिवाय बीजा कोइ पुरुषने नहि देखुं." एवी प्रतिज्ञा करीने ते पोताने घेर चाली गई. सत्य छ, के स्त्रीना मनने कोई पण. फेरवी शकतुं नथी. (त्रण हठ प्रसिद्ध छेस्त्रीहठ, बाळहठ अने राजहठ ) २७. सखीना आ रीते न्हाया विना जता रहेवाथी गुणमाला तेने माटे बहु दुःखी थई, कारण के जेम अनिष्टथी संयोग अने इष्टथी वियोग जेटलो पीडाजनक होय छे तेथी वधु कोई वात दुःखदायी होती नथी. २८. एटलामां ते नगरना रहेनारने एक गन्धहस्तीनो डर लाग्यो, अर्थात् काष्ठांगारनो एक हाथी छूटी गयो अने तेथी नगरनिवासी भयभीत थया. विपत्तिओ तो पीडा देनार होय छेज, किन्तु मूल्ने तेलो डरज पडिा आपे छे. २९. ते वखते हाथीने देखतांज गुणमालाना नोकर चाकर तेने एकली मूकीने जता रह्या. सत्य छ, के विपत्ति पडवाथी मनुष्योना बंधु रहेता नथी, अर्थात् विपत्तिकाळमां बधा जुदा थई जाय छे. ३०. परंतु कोई दायण दयाथी तेने (गुणमालाने) पोतानी पीठ पा। छळ राखीने आगळ उभी रही अने बोली के, " पहेला हुँ मशि अने पछी आ कन्या मरशे. ३१. सत्य छे, के आ संसारमा बंधु लेज छे के जे सुख दुःखनी वखतें समानता
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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