SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आवी शकतुं नथी के, कोने कया कारणथी अथवा कया प्रय. नथी धन प्राप्त थशे. १२. ज्यारे ते नाविक (नावमां बेठेलो वणिक) समुद्रनी आ पार आवी गयो त्यारे अहीं आवतां धारासंपातथी अर्थात् खूब जोरथी वरसाद वरसवाथी तेनी होडी अटकी, कारण के विपत्तिनो समय मनुष्योने विदित थतो नथी अर्थात् विपत्तिनी घडी क्यारे आवशे ते जणातुं नथी. १३. अने होडीवाळा ते होडीना समुद्रमां डूबतां पहेलांज शोकरुपी समुद्रमां डूबी गया. तेमना शोकनो कंई अंत रह्यो नहि. अने पछी नाव (होडी) नो नाश थवाथी तो तेमणे परम दुःखनुं दृष्टान्त दीलु. १४. परंतु वैश्ययात्री श्रीदत्त बुद्धिमान हतो, तेथी ते कोई रीते गभरायो नहि, कारण के जो मूर्ख अने ज्ञानी बन्ने गभराइ जाय, तो पछी मूर्ख अने ज्ञानीमां भेदज शो रह्यो ? १५ " हे पंडितो! आगळ आवनार विपत्तिओना विचारथी तमे केम दुःखी थाओ छो ? शुं सापना भयथी डरीने तमे सापने मोढे हाथ देशो? अभिप्राय ए छे के, जे दुःख आवनार छे, ते तो आवशेज. तेना विचारमा पहेलेथजि दुःखमां पडवू ए शुंबुद्धिमानोनुं काम छ ? १६ विपत्तिनो उपाय ए के शोक करवो नहि. 'ड नहि ' एज एनो उपाय छे. अने ते डर नहि अर्थात् निर्भयपणुं तत्वना जाणनारनेज होय छे. तेथी हे बुद्धिमानो ! तत्वोने जाणवाने प्रयत्न करो. १७" ते बुद्धिमान वणिक नाववाळाने
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy