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________________ ३२ ते कुलीन छे, मोटा छे अने हुं तेथी हलको लुं. ७३. जीवंधरे पण " पद्मास्य आ कन्याने योग्य छे, " एम कहींने तेनुं आपलं जळ ग्रहण करी लधुं; अर्थात् ए कन्यादानना जळनो पोते जाते स्वीकार कर्यो नहि, पोताना मित्रने माटे स्वीकार कर्यो. कारणके सज्जन पुरुषानी प्रीति अयोग्य कायामां थती नथी. ७४. पछी ए कं के, हे श्वसुर ! आप पद्मास्यने माराज जेवो समजो . कारण के खरी मित्रता तेज छे, के जेमां शरीर मात्रनी जुदाइ होय छे. अने कंइ पण भेद होतो नथी७५. " त्यार पछी पद्मास्य अग्निने शाक्षी करीने नन्दगापेद्वारा प्रसन्नता पूर्वक मळेली गोदावरीनी पुत्री गोविन्दाने परण्या. नन्दगोपनी स्त्रीनुं नाम गोदावरी हतुं. ७६. आ प्रमाणे श्रीमान् वादीभसिंहसूरिए रचेल क्षत्रचूडामणि प्रन्थमां " गोविन्दालम्भ " नामे बीजुं प्रकरण पूर्ण थयुं.
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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