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________________ राणीए मू ने वश थइने प्रसूतिनी पडिा जाणी नहि अने तेज दिवसे प्रसव मासमां अर्थात् नवमे महिने पुत्र प्रसव्यो. ८८. ए वखते तेज स्थानमां पुत्रना पुण्यथी कोइ देवी धावना रुपमां तेनी पासे आवीने बेठी; कारणके ज्यारे पुण्यनो उदय होय छे त्यारे कोइ पण वात दुष्प्राप्य थती नथी अर्थात् पुण्यनो उदय थवाथी सर्व कंइ प्राप्त थाय छे. ८९. ते धावने जोइने राणीना हृदयनो शोकसागर उभराइ गयो; कारणके पोताना बंधुओना पासे आववाथी दुःख उभराइ आवे छे अर्थात् तेथी पण वधारे प्रगट थाय छे. ९०. देवीए बाळकना भवाना मध्यमां भमरी इत्यादि अनेक प्रकारनां चिन्ह बतावीने तेनुं माहात्म्य वर्णन कर्यु अने राणीने धीरज आपीने कधु;-९० " हे देवी ! तुं पुत्रना पालण पोषणमां जरा पण चिन्ता करीश नहि. आ क्षत्रिपुत्रने योग्य तारा पुत्रनुं कोईने कोई पालण पोषण अवश्य करशेज.” ९२. आQ कहेतांज कोई पुरुष एवो दीठामां आव्यो, जे पोताना मरेला पुत्रने स्मशान भूमिमां राखीने आव्यो हतो अने सत्यवक्ता योगीन्द्रना वचनानुसार त्यां पुत्रने शोधतो हतो. ९३. तेने जोईने राणीए तेनुं (घाव) वचन खरुं मान्यु; कारण के स्थिर, विसंवाद रहित अविरोधी अने सत्य वाक्यथीज पदार्थनो निश्चय थाय छे. ९४. त्यार पछी राणी बीजो कोई उपाय नहि जडवाथी ते देवीनी प्रेरणाथी पोताना पितानी मुद्रा (वींटी) पहेरेला पुत्रने आशीर्वाद आपीने अन्तर्ध्यान थई गई. ९५.
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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