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________________ तेथी विवेकी पुरु षोए राज्यनो त्याग करवो जोइए. ६९. ए रीतनी भावनाथी राजाने उत्कृष्ट राज्य थ्यो. पछी ते तेज लडाईमां संपूर्ण परिग्रहने अने शरीरने छोडीने दिव्य सम्पत्तिने अर्थात् स्वर्गलोकने प्राप्त थई गयो. ७०. सर्वे नगर वासी अने देशवासी लोको उदास अने विरक्त थई गया; कारण के नवी अने तरतनी पीडाथीज मनुप्योने घj करीने वैराग्य थई जाय छे. ७१. स्त्रीओना विषयमा प्रीति के अनुराग बहु क्रुर अथवा कठोर छे. अने जे लोक रागान्ध थईने तेनाथी ठगाय छे, ते प्राज्य राज्य अर्थात् बहु भारे ऐश्वर्य अने प्राण नो पण त्याग करे छे. सत्य छे, के रागी पुरुष शुं छोडतो नथी ? अर्थात् सर्व कंई छोडी दे छे. ७२. बहु खेदनी वात छे के, मूर्ख माणस स्त्रीओनी जांघना छिद्रमां स्थीत अने मळमूत्रथी भरेला चामडाथी विष्टा खानार सुअरनी माफक सुख माने छ; अर्थात् मूढ माणस महा निकृष्ट विषयभोगादिकमांज आनन्द समझे छे. ७३. स्त्रीओना संगथी जे सुख प्राप्त थाय छे, ते वगर विचारेज रमणीय जणाय होय छे. परंतु ज्यारे ए विचारे के, आ सुख शुं छे, केवु छे, केटलुं छे, क्यां छे, तो पछी ते सुख, दुःखज थइ जाय छे. ७४. निष्फळ अने दुष्फळ बुद्धि अर्थात् फळरहित (व्यर्थ) अने खोटा फळवाळी बुद्धि निवारण करवा छतां पण खोटा काममा प्रवृत्ति थाय छे अने यत्न करवाथी पण सारा काममा प्रवृत्ति थती नथी, तेनुं
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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