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________________ आकृष्ट थईने अने गाढ रागमां लिप्त थईने पोतानो समय गाळवा लाग्यो. २०. एक दिवस उंघमां सूतेली विजया राणीए प्रभातने वखते अर्थात् पाछली रात्रे स्वप्न दीयुं; कारणके ज्यां सुधी स्वप्न आवतुं नथी, त्यां सुधी शुभ के अशुभनो (इष्ट के अनिष्टनो) प्रादुर्भाव (उत्पत्ति) कदापि थतो नथी. २१. पछी शौचादिकथी निवृत्त थईने राणी पोताना स्वामी राजा पासे आवी अने अर्धा आसन उपर बेसीने पृथ्वीना उपभोग करनारा राजाने कधुं - " ( मने स्वममां पहेलुं ए देखायुं के एक अशोक वृक्ष छे, जेने कोईए काप्युं छे, पछी तेनी जग्याए एक सोनानुं अशोक देखायुं, त्यार पछी आठ माळाओ दीठामां आवी. ) " २२. राजा आ त्रणे स्वप्नो सांभळीने कंईक उद्विग्नचित्त अर्थात् उदास थई गयो, अने तेनुं फळ क्रम रहित कहेवा लाग्यो; अर्थात् पहलं प्रथम स्वप्न छोडीने पाछलां बे स्वप्ननुं फळ कहेवा लाग्यो. २३. कारणके धन, दौलत, पुत्र, मित्र, स्त्री आदि सर्व कई होवा छतां पण मनुष्योनां हृदयोने पोतानो प्राण नाश थवानो डर शंकु अथवा त्रिशूलनी माफक पीडा आपे छे. २४. हे देवी! तें स्वप्नमां जे तरुण अशोक मोर सहित दीढुं छे तेथी, ए विदित थाय छे के, तारे एक मोटो प्रतापी पुत्र उत्पन्न थशे अने आठ माळाओ तेनी आठ बहुओने बतावे छे, अर्थात् तेनी आठ स्त्रीओ थशे. २५. राणीए कयुं - " हे आर्यपुत्र ! तेना पहेला जे वृक्ष दी हतुं अने फरी तेनो नाश थतो हतो, तेनुं शुं फळ छे ?
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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