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________________ त्यागवांज योग्य छे. २८. प्राणीओनी ए प्रथा छे के, तेमणे जन्म लधिो, पुष्ट थयो, अने पछी नाश थयो. स्थिर कोई रघु नथी, तथा हे आत्मा! स्थिरस्थान अर्थात् मोक्ष तरफ ध्यान आप अथवा मोक्ष प्राप्त कर. २९. आ जीवन क्षण मात्र पण स्थायी जणातुं नथी, तोपण बहु खेदनी वात छे के, प्राणीओनी ईच्छाओ करोडोथी पण अधिक छे. ३०. विषयभोग लांबा वखत सुधो रहीने पण आखरे नाश पामे छे. ” ज्यारे एवो निश्चय छे, त्यारे तेने पोतेज छोडी देवो जोईए. कारण के अमे नहि छोडीए, तोपण ते नाश थवाथी बचशे नहि. जो अमे लेने पोते छोडी दईशु, तो अमारी मुक्ति थई जशे, नहि तो जन्म मरणरुष संसारनी - वृद्धि थशे. ३१. जो नाशवान् शरीरर्थी अविनाशी सुख अथवा मोक्ष प्राप्त थई शके, तो हे आत्मा ! व्यर्थ समय केम खुवे छे ? तारे समयने सफळ करवो जोईए. अर्थात् मुक्ति प्राप्त करवानो यत्न करवो जोईए. ३२. २. अशरण भावना. हे जीव ! जेम नावना डूबवाथी समुद्रमां पक्षीने कोई पण शरण होतुं नथी, तेज रीते मृत्यु समये तारं कोईपण शरण थई शकतुं नथी. स्वास्थ्य रहेतांज अर्थात् सारी भलाइमांज हजारो शरण सहायक जणाय छे. ३३. जो आ जीवनी रक्षा .माटे एना प्यारा बंधु बहुज आयुध लइने चारे तरफ घेराएला होय, तोपण ते जोत जोतामांज नाश पामे छे. ३४. हे आत्मा! मंत्रयंत्रादिक पण तारा साचा स्वतंत्र रक्षक नथी. पुण्य होवा
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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