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________________ बळे छे, ते यथार्थ वातने विचारी शकता नथी. ३५. आखरे युद्ध थवा लाग्युं, तेमां केटलाक राजा तो जीवंधरनी तरफ थई गया अने केटलाक वेरीना पक्षमां गया, कारण के संसारमा सुजन अने दुर्जन बन्ने प्रकारना मनुष्य होय छे, अने ते आज थई गया नथी, हम्मेशांथीज छे. ३६. त्यार पछी ते युद्धमां कौरव अर्थात् जीवंधर कुमारे काष्टांगारने परलोकमां पहोंचाइयो. हाय ! आ संसारमा दुर्बळ पुरुष बळवानथी मार्या जाय छे. ३७. शत्रुना मरवाथी व्यर्थ जीवहत्याना डरथी कुमारे लडाई बंध करी दीधी, कारणके जे क्षत्री होय छे ते व्रती होय छे; अर्थात् क्षत्रीओने संकल्पी हिंसानो सहजज त्याग होय छे, अने विरोधीना मरी जवा पछी नरहत्या थवाथी जे हिंसा. थाय छे, ते संकल्पी होय छे. ३८. ते वखते गोविन्दराजे एवं कडं के,-" मारी बहेन विज्याए आवा वीर पुत्रने जन्म आप्यो अने मारी पुत्री लक्ष्मणा आवा वीर पुरुषनी स्त्री थई. " पछी कुमार- आनंदथी अभिनंदन कयु. ३९. पछी आसपासना चारे तरफथी आवेला सामन्त राजा तेमनी सेवा करवा लाग्या, कारण के नाटकना सभ्यो अर्थात् दर्शकोने नाटकमां कोईनी संपत्तिनो नाश थवो अने उदय थवो बराबर छ, अर्थात् आधीनस्थ सामन्तगण जे राजा थाय छे, तेनी सेवा करवा मंडे छे. एकनो उदय अने बीजानो अस्त तेमने समान छे. ४०. पछी जीवंधर स्वामी राजपुरीना जिनमंदिरमां राज्याभिषेकथी अभिषिक्त थवाने गया, कारण के दिव्य स्वरुप
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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