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________________ के आ रीते आदर विना कोईनी कृपाना भरोशाथी जवू, ए तो लज्जावानने माटे मरवुज छे. १८, द्वाररक्षक सुंदरीओए डरतां डरतां आ वात सुरमंजरीने कही दीधी. कारण के स्वामीने आधीन रहेनार सेवकोने भय अने स्नेहनुज बळ रहे छे. १९. पुरुषोथी द्वेष करनार सुरमंजरीए पण ते अतिशय वृद्ध पुरुषने दीठो अने बेसाडयो. सत्य छे के प्राणीओनांबधां काम कुदरतने अनुसारज थाय छे. २०. पछी ते बुढाने भूख्यो जोईने ते श्रेष्ठ कुमारीए भोजन कराव्यु, कारण के अंतःस्वरुपनी यथार्थतामां वेष नियन्ता होतो नथी; अर्थात् बहारनी आकृतिथी अंदरनो खरो भेद खुलतो नथी. २१. भोजन कर्या पछी ते बुद्धिमान जाणे बुढापाथी थाकी गयेला होय तेम एक शय्यापर सूई गया. कारण के जे लोक विचार करीने काम करे छे, ते योग्य समयनी प्रतीक्षा करता रहे छे. २२. त्यार पछी गायन विद्याना जाणनार ते बुट्टाए संसारने मोहित करनार गायन गायुं, कारण के पांचे इंद्रिओथी उत्पन्न थएल मोह एक बीजा साथे अधिक अधिक प्रीतिजनक होय छे. २३. सुरमंजरीए गावानी कुशळता जोईने बुढाने बहु शक्तिवान मान्या. कारण के जे विशेषज्ञ होय छे, ते कोई ने कोई प्रकारथी विद्वानो अने अविद्वानोने ओळखीज ले छे. २४. अने तेथी ते आ वृद्ध ब्राह्मण पासे पोताना कामनी पण आदरपूर्वक परीक्षा कराववाने तप्तर थई,
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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