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________________ ( ७४ ) और इनकी आपसी सलाह को सुना था, वह तुम्हें इस समय याद है ? प्रयाण के समय महाराजा के वारवार बुलाने पर भी यह कुटिल जयकुमार बिमारी के बहाने यहीं पर अड़ा रहा । न मालूम इस दुष्ट के यहां रहते क्या २ अनिष्ट होगा ? रानी इतना कह कर शोक में लीन हो गई। इधर जयकुमार ने बाल-हत्या के लिये तरह २ के कई उपाय किये लेकिन वे सब भाव-रहित धर्म, और जल रहित अंकूरों की तरह निष्फल हुए । अन्त में वह शुभ दिन आ पहुँचा जिसकी प्रतीक्षा बडी उत्कण्ठा से की जा रही थी । पूर्ण समय में और शुभ लग्न में अधरात्री के समय महारानी सूर्यवती ने पुत्र-रत्न पैदा किया । उसके जन्म समय में सभी ग्रह उच्च के थे । वह अपने तेज से दीपक की आभा को निस्तेज कर रहा था । स्वरूपधारी सूर्य की तरह सुन्दर और तेजस्वी पुत्र रत्न को देखकर रानी का हृदय- रूपी सरोवर हर्ष-रूपी जल से भर गया, और वह उसके शरीर से रोमांच के बहाने बाहर निकल कर बहने लगा। __उस सुन्दर सौभाग्यशाली सम्पूर्ण-सामुद्रिक शुभलक्षणों से युक्त पूर्णचन्द्र के जैसे मुख वाले खिले हुए कमल
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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