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________________ श्राई। यह देख धरण के आश्चर्य की सीमा न रही । वह मन ही मन जल रहा था, फिर भी उसने अपना मनोभाव तनिक भी प्रकट न होने दिया। उल्टा प्रसन्नता पूर्ण विश्वासी के जैसे कुछ इधर उधर की बातें करके अपने काम में लग गया। . इधर रणधीर के पिता ने रणधीर की खोज शरु की। शहर का कोना कोना छान डाला, पर कहीं पता न चला। अंतमें शून्य, कुँए से निकलती दुर्गन्धसे उसका पता चला शव निकाला गया। सर्वत्र हाहाकार मच गया। उसने भी इसकी चर्चा पति के सामने की । उसने भी दुनियावी ढंग से शोक प्रदर्शित किया । इस प्रकार करते धरते कुछ दिन बिते । एक दिन मौका पाकर मायाविनी उमा से विरक्त हुआ धरण घरका सारा धन बटोर कर घर से निकल गया।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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