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________________ ( ४२ ) मिलने की नहीं। यह बात बाड़े में स्थित बहू के कान में सुनाई दी, और उसने शीघ्र ही आकर अंगुठी को अन्दर के कोठे से निकाल कर ससुर के हाथ में रख दी। सब प्रसन्न हुए। नागिला को पता चला तब उसे एक ओर छिद्र मिल गया । वह चिल्लाकर बोली अरे ! जिस घर की वहएँ ही चोर हों वह घर कहां तक टिक सकता है। ऐसे तो एकर करके सारी वस्तुएँ चली जायेंगी। अरे लोगों ! इसके आचरणों को तो देखो ऐसी बहू तो मुझे किसी के घरमें दिखाई नहीं देती । अरे इसकी धीठाई तो देखो यह अपने पूज्य श्वसुर से भी नहीं चुकी। इसने उनकी अंगुठी भी चुरा ली। क्या करू ! कहां जाऊँ !! मेरो तो कोई बात ही नहीं सुनता । इस राक्षसी ने मेरा सारा घर चौपट कर दिया। यदि मुझे यह पहले से ही ज्ञात होता तो मैं इसके साथ अपने बेटे का विवाह ही न करती। - जब धरण घर लौटा तो मां-नागिला ने उसे खुब बहकाया। सारी बात इस प्रकार कही कि उसका क्रोध भड़क उठा । उसने बिना सोचे समझे उस सती स्त्री को पीटना शुरू कर दिया। डंडे की चोट उसके सिर में बड़े जोर से लगी। सिर फट गया। फिर भी वह श्रीदेवी ।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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