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________________ के जैसे मेरी अन्तरात्मा अत्यन्त प्रसन्न और बोझ से हन्को हो गई है। महाराजा प्रतापसिंह महारानी सूर्यवती को साथ लेकर कुशस्थल को ओर चल पड़े। थोड़े ही दिनों में कुशस्थल के बाहरी उपवन में जा पहुँचे उनके आगमन की खुशी में सारा शहर तरह तरह से सजाया गया। भारी उत्सव मनाया गया ।। महाराज शुभ मुहूर्त में नई महारानी के साथ नगर में प्रविष्ठ हुए। जनता ने उनका हृदय से स्वागत किया । महाराज नगर के मुख्य राज-मार्ग से होकर अपने विशाल महल में जा पहुँचे । वहां एक बड़ा भारी दरबार लगा और राजकीय रीत रिवाज संपन्न होने पर सब अपने २ घर चले गये। राज-काज में फिर पहले की ही तरह महाराज व्यस्त हो गये । उनकी प्रशस्त न्याय नीति से सारी प्रजा पहले से भी अधिक उन्हें चाहने लगी। अपने प्राचीन पुण्यों के प्रभाव से माननीय भोग भोगते हुए महाराज बड़ी ही निश्चिन्तता से राज-काज चलाने लगे। सच है पुण्य से क्या नहीं होता ? सुकुल जन्म-विभूतिरनेकधा, प्रिय-समागम-सौख्य-परम्परा ।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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