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________________ ( ४७६ ) वर्द्धमान भावों से करते, श्रीचन्द समसुखकारे हो श्रीचन्द समसुखकारे हो | तप । हो एक से लेकर सौ तक चढते, उपवासान्तर करना हो उपवासान्तर करना हो । वर्द्धमान तप पूरण होते, सहजे शिव सुख वरना हो सहेजे शिव सुख बरना हो । होम का गुण तप है पावन जीवन उज्ज्वल कारी हो जीवन उज्ज्वल कारी हो । सुविहित सद्गुरु गम विधि पाकर राध अधिकारी हो आरोधो अधिकारी हो । तप । हो चेटक राजा सविनय पूछे, कौन हुआ सिरिचन्दा हो कौन हुआ सिरिचन्दा हो । फरमावें श्री गौतम स्वामी सुनो चरित सुखकंदा हो सुनो चरित सुख कंदा हो । तप । ढाल- -२ ( तर्ज - गज़ल - भिखारी बनके आयाहूँ ) वही जन धन्य हैं जगमें तपस्या भाव करते हैं । क्षमा का भाव धरते हैं - नहीं जो क्रोध करते हैं |टेर | कुशस्थलपुर नगर स्वामी - प्रतापीसिंह राजा थे । सती सूरजवती रानी - कँवर श्रीचंद ताजा थे । वही |
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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