SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 493
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४७३ ) तप ज्योति जानो, तप मंगल गुण धाम, आतम गुण तप है, तप उत्तम परिणाम। हो कर्म निर्जरा इच्छा रोधन रूप, तप से ही होते, सिद्ध नमो निज रूप ॥२॥ चौदह वर्षों में तीन मास दिन वीस, हो वरधमान तप करें भविक सुजगीश । सुब्रत विधि साधन प्रवचन सारोद्धार, समझा जगमें जिन आगम जयकार ॥३॥ सुखसागर जगमें वर्धमान भगवान , शासन में करते सविवेकी गुणवान । जो वरधमान तप गाते कीरति सार, सुर गण नायक हरि कवीन्द्र वारंवार ॥४॥ ॥ स्तुति ४ ॥ सविवेक दयामय बोध बुद्धि दातार, श्रीवर्धमान जिन विजयी जगदाधार । शासनपति भाषे वर्धमान तप सार । तपसी हो कर के वन्द वारंवार ॥२॥ आतम परमातम हो जाता है आप, वप आराधन से मिटे करम संताप ।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy