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________________ ( ४७१ ) ★ कमान तप स्तुतियाँ ★ ॥ स्तुति १ ॥ आतम ज्ञानी का मिटता है मिथ्यात्व, मिथ्यात्व मिटे से प्रकटे जीवन तच । विकसित जीवन ही होवें अरिहंत देव, कर वरघमान तप साधन साधू से |१| व्रत मिटने से प्रकटे सुव्रत भाव, सुव्रत जीवन में प्रकटे पुण्य प्रभाव | पुण्यातम प्राणी वरघमान तप धार, सिद्धि गति पावें गाउँ जय जय कार |२| भव भाव टिकाउ कप, कपाय हैं चार, जो क्रोध मान अरु माया लोभ विचार | कर वरमान तप तज दो दूर कषाय, आगम विधि सुन लो बोध बुद्धि गुणदाव | ३ | मन वच काया व्यापार योग विरोध, कर श्री जिन शासन में निज आतम शोध । यातें सुख सागर पद में हो भगवान्, सुर गण नायक हरि गुरु कवि करें बखान | ४ | ॥ स्तुति २ ॥ हैं दान शील तप भाव धरम के भेद, राधें उनका मिट जाता है खेद ।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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