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________________ ( ४३६ ) पुण्य किया था ? जिससे मुके ये सब देवताओं से भी बड़ कर सुख सामग्रियाँ प्राप्त हुई हैं। उसको मार्थना का उत्तर देते हुए आचार्य देव ने फरमाया। ___पुण्यात्मन् ! तुमने अपने पूर्व भव में ऐरवल नामक क्षेत्र में विधि पूर्वक प्रायम्बिल-वर्धमान तप किया था यह सारा ऐश्वर्य उसी तप के प्रभाव से तुम्हें प्राप्त हुआ है। तुम्हारे पूर्व-भव की कथा इस प्रकार है ऐरवत क्षेत्र के बृहण नामके नगर में जयदेव नामके राजा' राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम जयादेवी था। बहुत से देवी और देवताओं को मनाने के बाद उनके नरदेव नामका एक पुत्र उत्पन्न हुआ। जब वह शिक्षा पाने योग्य हुआ तो राजा ने शुभ महूर्त में उसी नगर के एक ख्यातनामा विद्वान् के पास विद्याभ्यास करने के लिये उसे रख दिया। जयदेव राजा के वर्तमान नामका एक धनवान सेठ अमिन्नहृदयी मित्र था । उसके वल्लभादेवी नामकी पत्नी थी। उनके चंदन नामका एक पुत्र हुश्रा जिसे देख कर सेठ दम्पती माता-पिता ने पढ़ने लिखने योग्य हुआ समझ उसे उसी विद्वान् के पास पठनार्थ भेज दिया। ने पढ़ने जिस देख कर समझ उसे उसी
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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