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________________ ( ४१६ ) गौर से देखने पर उनने दो को तो अच्छी तरह पहचान लिया, मगर तीसरे को न पहचान सके । तब वे उनके काम देखने के विचार से वहीं रुक गये। ___ चौर आपस में विचार करने लगे। लोहखर ने कहा, यहाँ पर जो राजा आया है उसने गायक को कल से दुगुना धन दिया है सो चलो वहीं चलें।" तब वज्रजंघ बोला, "सुनो । आगन्तुक राजा के पास एक सुवर्णपुरुष सुना जाता है, सो चलकर उसे ही क्यों न चुरा लिया जाय जिससे अपना जन्मजन्मान्तर का दारिद्यू ही दूर हो जाय । तुम अवस्वापिनी विद्या के जानकार और तुम्हारा भाई धन की गंध का जानकार है। तुम्हारा भतीजा मैं एक बार सूबे हुए धन को गंध मात्र से ही जान लेता हूँ।" लोहखर ने उत्तर दिया, भाई ! यह राजा बड़ा धर्मात्मा भाग्यशाली, न्यायी और परोपकारी है इसलिये इसका कोई कुछ भी हरण नहीं कर सकता। अपना किया हुश्रा उद्यम व्यर्थ जायगा। इस प्रकार सलाह करके लोहखर ने हाथ से कुछ धूल उठाई और उसे मंत्रित करके वीणारव के डेरे की ओर ऊपर को उछाल दी। फिर वे
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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