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________________ ( ४१३ ) से विवाह किया। मदन .सुदरी के मुह से यहां सुवणपुरुष आदि के वृत्तांत को सुनकर महारानी सूर्यवतीजी चंद्र कलाजी आदि सब लोग बडे विस्मित हुए। वहां से भी राजा को, गुणवती रानी को, एवं स्वर्ण पुरुष को, साथ लिया । जंगल में जहां पर बड़ के पेड़ में मणिगृह छिपा हुआ था। वहां से सार वस्तुएँ ग्रहण की रत्न चूड़ के मृत्यु-स्थान पर आये । उसके दाह स्थान पर एक जिन मन्दिर बनवाया । वहाँ से कान्ती पुरीगये कान्ती नरेश नरसिंह ने बड़े उत्सव के साथ नगर प्रवेश कराया, कान्ती के पास में ही बड़गाँव में गुणधर कलाचार्य रह रहे थे। श्रीचन्द्र ने अपनी पत्नी सहित वहाँ जाकर गुरु और गुरुपत्नी को नमस्कार किया और अपूर्व भेंट अर्पण की। गुरु के पुत्रों, कुटुम्बियों और बाँधवों आदि का भी यथा योग्य सत्कार किया। कलाचार्य ने भी अपने शिष्य श्रीचन्द्रकुमार को भूरि भूरि अशीर्वाद दिये। - इसके बाद रानी प्रियंगुमंजरी और राजा नरसिंह साथ वह हेमपुर को गये। वहां पर मदनपाल का पिता मकरध्वज राज्य करता था। मदनसुन्दरीने श्रीचंद्र को अपना पति बनाया है यह सुनकर वे बहुत प्रसन्न हुए । उन दोनों के साथ फिर वहां से राजा श्रीचन्द्र चल
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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