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________________ भयानक मूर्तियों से दर्शकों के दिल को दहला देती थीं। इधर महाराजा प्रतापसिंह और राजा दीपचन्द्र भी अपने सैनिक वेश में वहां आ पहुँचे । उनके सन्मान में तोपचियों ने तोपें दाग कर दोनों का स्वागत किया। सैनिकों ने सैनिक ढंग से दोनों का अभिवादन किया । महाराज की आज्ञा पाते ही सेना ने अबाधगति से सिंहपुर की तरफ कूच कर दिया। सिंहपुर के समीप एक सुन्दर नदी के किनारे शत्रुओं की चोट बचाकर डेरे डाल दिये गये। __ भील राजा शूर के गुप्तचरों ने इन समाचारों से अपने स्वामी को परिचित किया। उसने भी अपने बूढ़े भील सरदारों को एकत्रित करके पूछा कि क्या करना चाहिये ? उन्होंने कहा बलवान शत्रु के सामने से भाग जाना ही उचित होता है । भील राज शूर को उनकी यह सलाह पसंद न आई । वह स्वयं एक वीर योद्धा था । कायरता पूर्ण भाग जाने की अपेक्षा शत्रु से दो दो हाथ करके रणभूमि में सदा के लिये सो जाना ठीक समझता था । उसने अपने सैनिकों को अपना निर्णय सुना दिया। स्वामी की उत्तेजनात्मक प्रेरणा से प्रेरित हो सभी लड़ने को तैयार हो गये। श्रेष्ठ गंधहाथी की पीठ पर चढा हुआ
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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