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________________ ( ४०७ ) उत्साहित हो उठे हैं । जोश का एक नया तूफान उफन रहा है। यह सुनते ही राजा श्रीचन्द्र का शरीर वीर रस की साक्षात् मूर्ति हो गया । आँखे लाल हो गईं । भौंहे कमान की तरह तन गई । शत्रुओं पर प्रहार करने वाली भुजायें फड़क उठीं। वह शीघ्रता से सब में वीरता के भाव भरता हुआ चन्द्रहास खड्ग को हाथ में लेकर सहस्रकिरण सूर्य के समान अपनी सेना में प्रदीप्त हो उठा। राज राजेश्वर श्रीचन्द्र को वहां आये जानकर शत्रुत्रों के सिपाही कांप उठे । उनके हृदयों में खलबली मच गई। मुखमंडल निस्तेज हो गये । चेहरों पर मारे भय के हवायां उड़ने लगीं । अब उन्हों ने अपनी जीत की श्राशा को छोड़ दी । राजाधिराज श्रीचन्द्रने साम-दाम भेद और दण्ड की राजनीति में चतुर अपने दूत को गुणविभ्रम के पास भेजा, और कहलाया की तुम ने पहिले कनकपुर नरेश से जो दण्ड लिया है, उस को सौगुना कर के हमारे खजाने में जमा करा दो। अन्यथा लडने की पूरी तैयारी कर मोर्चे पर आजाओ । राजा गुणविभ्रम को दूतने महाराज श्रीचन्द्र का सन्देश सुना दिया । सुनते ही वह आग बबूला हो गया।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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