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________________ ( ३६७ ) जानकर यह कन्या अन्दर ही अन्दर दुःख पाती हुई आपके स्मरण में जीवन व्यतीत कर रही है। ___इधर कुण्डिनपुर के नरेश अरिमर्दन का पुत्र चन्द्रसेन हंसावली से विवाह करना चाहता था, इसीसे चन्द्रा वली की प्रतीज्ञा और आपका विदेश गमन जानकर उसके मन में कुमति पैदा हुई । वह अपने नगर से निकल पड़ा । कनकपुर में पहुँच कर उसने आपको सारी स्थिति का अध्ययन किया । इसके बाद वह एक मनुष्य को साथ लेकर यहाँ आया। उसने अपना नाम श्रीचन्द्र रखा । उसके छल कपट का हम लोगों को कोई पता न चला । हम और कन्या उसको सचमुच श्रीचन्द्र समझ कर अत्यन्त प्रसन्न हुए। उसने कपट जाल बिछा दिया। एक समय कनकपुर का व्यापारी हमारे यहां आया। उसने राजकुमार को पहिचान लिया। यह जानकर हम बड़े दुखी हुए कि श्रीचन्द्र के बदले में चन्द्रसेन ने हमें धोखा दिया है, हमारी पुत्री के दुख का तो क्या पूछना ? मन्त्री चिंतित हो उठे । विवाह विष होगया। कुमारी हंसावली प्रायश्चित्त के लिए अग्नि में जलने को तैयार हुई। हमने बहुत रोका पर यह अपने आग्रह पर डटी रही। हमें अपनी अज्ञानता पर पश्चात्ताप हो
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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