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________________ ( ३६३ ) साथ मेरा जो सम्बन्ध हुआ है, इसे मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ"। विद्याधरियों ने कहा कुण्डलपुर-नरेश ! हम अनुनय विनय कर के आपको रोक कर आप के कार्य में कोई बाधा पैदा करना नहीं चाहती हैं। केवल एक ही प्रार्थना है, कि इन कन्याओं का पाणि-ग्रहण करके इन को साथ ले पधारें। ताकि मदन सुन्दरी के साथ इन का जो प्रेम है उसमें वियोग का कष्ट इन्हें न हो। श्रीचन्द्र ने उत्तर दिया माताजी! आप क्यों इतना विचार करती हैं ? विवाह तो जब चाहेंगे तभी हो जायगा। जब आप लोगों को पुनः राज्य की प्राप्ति होगी तभी मैं इन से ब्याह करूगा । किसी प्रकार समझा बुझा कर उनकी अनुमति से वह मदना को साथ ले कर वहां से रवाना हुआ, तब रत्नचूड़ा रो पड़ी। उसने रुधे हुए स्वर में कहा-स्वामिन् इधर आप पधारने का विचार कर के हमारे लिए दुस्सह विरह की आग भड़का ही रहे हैं, पर इन हमारी बड़ी बहीन मदन सुन्दरी जी को आप क्यों लिये जाते हैं ? हमारी हालत पर भी तो जरा गौर कीजिए । हम यहां इस वियोगी दशा में कैसे जीयेंगी ? उसकी प्रार्थना पर कुमार का हृदय पाघल गया। उनने
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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