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________________ ( ३८३ ) इधर मंत्रियों ने मिलकर राजा अरिमर्दन के बंधन काटे, और मन्दिर के चबूतरे पर उन्हें ला बिठाया। श्रीचन्द्र से वांछित धन को पानेवाला वह चारण भी वहां आ पहूँचा । उसने राजा से श्रीचन्द्र की महती महिमा श्रीचन्द्र-प्रबंध के रूप में गा सुनाई । भट्ट द्वारा मुझे बांधनेवाला पुरुष श्रीचन्द्रराज ही था यह जानकर राजा बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने अपने सिपाहियों को श्रीचन्द्र राज को लेने के लिये भेजे पर उसे वे न पा सके, और योंही निराश होकर वापस लौट आये ।। राजा मंदिर में अपनी कन्या सरस्वती के पास गया, वहां वह वंदरी के रूप में आंसू भरे खड़ी थी। उसे देख कर राजा बड़े ही दुखी हुए। जब सखियों ने सारा रहस्य समझाया तो उन्हें कुछ धीरज' हुआ, और वे कुमार की कला को सराहने लगे। अपनी पुत्री से उनने कहा-बेटा ! महाराजाधिराज प्रतापसिंह के परम प्रतापी पुत्र श्रीचन्द्र ने तुझे ब्याहा है । तू बड़ी भाग्यशालिनी है। मैं तुझे हाथी घोडे आदि हहेज की उत्तम सामग्री के साथ कुशस्थलपुर. पहुँचाउंगा । तू जरा भी चिंता मत कर । राजाने उस भट्ट को खूब दान दिया। एवं अपनी उस वानरी कुमारी सरस्वती को अपने महल में ले गया। सारे शहर में प्रसन्नता छा गई ।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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