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________________ ( २१ ) से प्रार्थना की कि हे महाराज ! कुदरत की अकल क़ला से प्रेरित हो आपके श्री चरणों का संबंध इस देश के साथ इस नगरी के साथ और इसके निवासी हम लोगों के साथ हुआ है यह एक अभूतपूर्व घटना है । अब मैं अपनी राज कुमारी सूर्यवती जो मेरी एकमात्र लाडली बेटी है, उसका संबंध मैं चाहता हूँ आपसे हो जाय । सूर्य और प्रताप के प्राकृतिक संबंध के जैसे यह संबंध संसार में प्रकाश देने वाला हो । मेरी इस भावना का श्रीमान भी आदर करेंगे । राजा दीपचन्द्र की इस बात को सुन महाराजा ने बड़ी प्रसन्नता के साथ कहा कि भला ! प्राकृतिक संबंध की बात का कौन हितैषी आदर नहीं करेगा ? आपके इस स्वाभाविक सद्भाव के लिये हम आपको धन्यवाद देते हैं । महाराजा की स्वीकृति से दोनों ओर मंगल किये गये । बाजे बजने लगे । याचकों को दान दिया गया । ज्योतिषी लोगों से मुहूर्त निश्चित किया गया। विवाह की खूब जोरों से तैयारियां होने लगी । आखिर वह शुभ घड़ी भी आ पहुँची जिसमें महाराज का विवाह राजकुमारी सूर्यवती के साथ बड़े आनन्द समारोह के साथ संपन्न हो गया । प्रजाजनों और राजकर्मचारियों ने पूरा २ योग दिया । महा
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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