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________________ ( ३३६ ) .: इधर कनकपुर-नरेश कनकध्वज दैवयोग से अपुत्र ही परलोक सिधार गये थे। इसलिये उनके मंत्रियों ने पंच दिव्य किये। तीन दिन नगर के बाहिर और भीतर हाथी, घोड़ा छत्र, चँवर और कलश अधिकारियों के साथ घूमते रहे । कुमार श्रीचन्द्र पर अभिषेक हो गया। मंत्रियों ने उससे राजकुमारी कनकावली का विवाह करके उसे राज्य-सिंहासन पर विराजमान कर दिया। . नगर में धूमधाम से सवारी निकली । प्रजाजनों ने अभिनन्दन किया। कैदी छोड़े गये । विद्यार्थियों को अनाथों को मिठाइयां बांटी गई। देव-मंदिरों में पूजाविधि संपन्न की गई। राजा श्रीचन्द्र प्रजा का पिता के समान पालन करने लगा। एक समय राजा से लक्ष्मण मंत्री ने प्रार्थना की कि महाराज ! आपके वंश-परिचय के अभाव में गीतों के गाने में बड़ी अड़चन होती है। कुमार ने इस आग्रह का निषेध करके गुणों को देखियें, बस इतना ही संकेत किया। . वीणापुर नरेश की कन्याका स्वयंवर होने वाला था। लोग कनकपुर के रास्ते से वीणापुर जा रहे थे । गासनाचार्य कलरवजी भी इसी रास्ते से आये थे। उन्होंने कनकपुर में 'श्रीचन्द्र प्रबन्ध' बड़े ठाठ से गाकर लोगों को .
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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