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________________ ( ३३५ ) करने से वे लोग निर्धन, सन्तति-हीन, निस्तेज दिखाई देते थे। खानदान के खानदान तबाह होरहे थे। संख्या दिन ब दिन घट रही थी। फिर भी वे अपनी इस आदत से बाज नहीं आ रहे थे। - मदना और कुमार ने बड़े ही भक्तिभाव से जिनवंदना ओर जिन-पूजा की। बाहर निकल कर कुमार ने मदना से कहा-सुनती हो ! यह नगर अपने अन्न जल लेने के योग्य नहीं है, क्यों कि यहां के सब लोग देवद्रव्य को खाने वाले हैं। यहां किसी का आतिथ्य स्वीकार न करना ही हमारे लिए श्रेयस्कर हैं। कुमार ने वहां उपस्थित बूढे मनुष्यों से पूछा कि देव-द्रव्य खाने में आपको ग्लानि नहीं होती १ देव-द्रव्य ग्रहण करने की शास्त्रों में आज्ञा नहीं है। कहा है: जिण दव्वं भक्खंतो, अणंत संसारिओ होइ। xxxx भक्खणे देव दव्वस्स, परित्थी-गमणेण य । । सत्तमं नरयं जंति, सत्तवारा उगोयमा !॥ . देवद्रव्येण या वृद्धि-स्तेन द्रव्येण यद्धनम् । तद्धनं कुल-नाशाय, मृतोऽपि नरकं ब्रजेत् ।।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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