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________________ ( ३३० ) सुवर्ण-पूतले को बाहर निकाला और जमीन में गाड़ दिया। सुबह वह अपनी स्त्री से जा मिला । उसे अंजन योग द्वारा बंदरी से मानुषी बना दिया। फिर रात की सारी घटना कह सुनाई। मदन सुदरी ने विस्मित होकर पति से पूछा देव ! इस सुवर्ण-पूतले का क्या प्रभाव है ? कुमार ने कहा प्रिये ! इस की पूजा करके चारों अंग काट लिये जायँ, और रात को ढक रखने से दूसरे दिन यह फिर तैयार-पूर्णांग हो जाता है। इस प्रकार जिसके पास यह सुवर्ण पुरुष हो वह धनवान हो जाता है, पर मेरा मन इसमें जरा भी रुचि नहीं रखता-क्यों कि इस के भोग-उपभोग से पहेले स्थूल प्राणातिपात विरमण-व्रत का एक तरह से खंडन हो जाता है । अतः दयालु पुरुषों के योग्य यह सुवर्ण-पुरुष नहीं है । . परस्पर में बात चीत करते २ प्रसन्न-मन दोनों पतिपत्नी आगे बढ़ते गये।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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