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________________ ( ३०८ ) समाप्त हुई। अब आप अपना परिचय दें । साहसिक | आप कौन हैं ? और यहां किस प्रकार आये हैं ? कृपा कर आप मुझे इस दुष्ट के पंजे से छुड़ा कर मेरा उद्धार कीजियें । यह सुन चन्द्रकला के पति श्रीचन्द्र ने अपने मन में विचार किया कि आज सुबह जो व्यक्ति मुझ से मारा गया है वह रत्न-चूड़ विद्याधर ही हो सकता है दूसरा नहीं। ऐसा विचार करके गर्व रहित हो कुमार ने अपना परिचय देना शुरू किया। कुमारी ! मैं कुशस्थल पुरका निवासी हूँ, और निर्धनता बढ जाने के कारण धन कमाने के लिये विदेश में आया हूँ । रात बिताने के लिये मैं इस वट वृक्ष पर चढ़ा और ज्यौंही मैं डालपर बिछी हुई डाभ की पुत्राल पर सोने लगा तो मुझे एक खोखल दिखाई दी । उसमें घुस कर मैं यहां आया हूँ । पाताल मन्दिर देखकर मैं इस पर चढ़ा और यहां इस दुमंजिले पर तुम्हें वानरी के रूप में देखा । मेरा तुमसे यही कहना है कि तुम वृथा दुःख क्यों झेल रही हो ? तुम कुमारी तो हो ही । उस विद्याधर के साथ शादी करने पर विद्याधरी हो जाओगी। इसमें तो मुझे तुम्हारा भला ही दिखाई देता है अतः तुम यहीं रहो ।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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