SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २७० ) की तारीफ सुनकर उस पर आसक्त हो गई है । उसीके आदेश से श्रीचन्द्र का चित्र लाने को कुशस्थलपुर जा रही हूँ । मदनपाल ने प्रियंगुमंजरी के चित्र को लेने के लिये भारी कोशीश की, परंतु वह सफल न हो सका, और योगिनी चली गई । मदनपाल कामज्वर से पीडित होकर दुबला होने लगा । मित्रों ने उसके पिता से असली हालत कह दी । उनने कान्ति- नरेश से उनकी कन्या की मांगनी की, किन्तु राजा नरसिंह ने उस मांगनी को ठुकरा दी। इस बात को जानकर मदनपाल अत्यधिक पीड़ित हुआ । पथिक ! वही मैं मदनपाल हूँ । पुष्प द्वारा आकृष्ट भौंरे की तरह उस निंद्य सुन्दरी के रूप से खींचा हुआ मैं यहां आया हूँ । 1 यहां आकर मैं राज- माली के मकान में ठहरा । मालिन हमेशा राजकुमारी के पास जाती थी । उसके साथ मैंने प्रियंगुमंजरी के पास संदेशा भेजा कि - हेमपुर का राजकुमार तुम्हारे चित्र को देखकर तुम्हारे मोहपाश में बंधा हुआ यहां आया है। कृपा करके दर्शन दे दो ।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy