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________________ सेठ की पुत्री हेमश्री ने भी राजकुमारी कनकवती की बात के साथ उसी प्रकार अपने मनोगत भावों को भी व्यक्त किया और कहा कि जिस महापुरुष की छाया भी ऐसी मनोहर है तो साक्षात् स्वरूप का तो कहना ही क्या ? धाय माता ने उन सखियों के विचारों की प्रसंशा की और कहा कि-मैं राजाजी से प्रेरणा करके अपने मंत्रियों को कुशस्थल भेजकर, विवाह के लिए कुमार श्रीचन्द्र को श्रामंत्रित करवा दूंगी। कुमार ने इन सारे विचारों को सुनकर अपने मन में विचार किया-यदि मैं यहां कुछ देर और ठहरा तो मुझे यहां कोई न कोई अवश्य पहचान लेगा, इसलिए अब यहां से चल देना चाहिए । यह सोचकर वह वहां से आगे को चला । बहुत सा मार्ग तय करने पर उसे दूर से एक ओर नगरी दिखाई दी। विश्राम की इच्छा से उसने पास ही के एक यक्ष-मंदिर में प्रवेश किया। वहां पहले से ही सिर पर हाथ धरे कोई चिंतातुर व्यक्ति बैठा था। उसे देखकर कुमार ने पूछा "भाई तुम कौन हो इस नगरी का क्या नाम है ? और तुम इतने चन्तातुर क्यों दिखाई देते हो"। उसने एक लम्बी सांस लेकर कहा-पथिक ! यह कान्ति नाम की नगरी है। महाराज नरसिंह देव इसके
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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