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________________ घोड़े, और तीसरी तरफ कई मनुष्यों को और चित्र विचित्र वेषधारिणी स्त्रियों को देखकर, विचार किया-न तो ये कार्पटिक मालुम पड़ते हैं। न कोई योगी और न ही तपस्वी । तो फिर ये कौन हैं ? उफ् ! इस संकल्प-विकल्प से क्या फायदा ? इसका पता वहां जाकर ही क्यों न लगा लू ? इतना सोचने के पश्चात् वह उसी उद्यान के समान आम्रवन में जा घुसा। वहां पर उसने एक अद्भुत कान्तिमान् तापस कुमार को देखा, जो कि चन्द्रमा के समान कान्तिवाला, बल्कल के वस्त्र पहने हुए, पैरों में मोरपंख की चट्टी पहने हुए, पेड की शाखा में बंधेहुए झूले पर झूल रहा था। वह तापस कुमार सोने के आभरणों से अलंकृत था। उसके अङ्ग भी कोमल प्रतीत होते थे । उसके पास ही किसी तापस कुमारी को भी इधर उधर आते जाते देख कुमार बडा ही विस्मित हुआ। कुमार कुछ आगे बढा तो उस तापस कुमार की दृष्टि कुमार पर पड़ी। कुमार के रूप से आकर्षित होकर उसने पाम खडी हुई बालिका से कहा-सखि ! यह आगन्तुक हमारा अतिथि है अतः फल-फूलों से इनका सत्कार करो।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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