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________________ ( २५२ ) वैसी अंगूठी उसीके हाथ में शोभायमान है । कुशस्थलनिवासी धन नामक सेठ का मैं व्यापारी-सेवक हूँ। वह कुमार धन नामक सेठ की धनवती नामक पुत्री का पति है। ... उस व्यापारी-सेवक द्वारा बतलाये हुए चिह्नों से कुमारी ने यह निश्चय करलिया कि वही मेरा पति श्रीचन्द्र है। ____ इसके पश्चात् राजा ने राजकुमारी को समझा बुझा कर भोजन करवाया और कहा कि पुत्री! अब किसी प्रकार का शोक मत करो तुम्हारे पति का पता लग गया है । हम शीघ्र ही राजाधिराज प्रतापसिंह के पास हमारे नगर के माननीय व्यापारियों और सुयोग्य मंत्रियों को भेज रहे हैं, जो जाकर इस विषय में उनसे प्रार्थना करके श्रीचन्द्र को यहां विवाह के लिये राजा के आदेश से लौटा लावेंगे। तुम किसी प्रकार से दुःखी मत हो।। . इधर मंत्रियों के नाम धाम आदि पूछ कर चले जाने के बाद कुमार शौचादि कार्य से निपट ने का बहाना कर वहां से चल दिया। कुछ दूर आगे जाकर उसने अपने कार्पटिक वेष को किसी दूसरे को दे दिया, और स्वयं ब्रह्मचारी का वेष बनाकर क्रम से उस देश का त्याग करके एक बड़े भारी जंगल में जा पहुंचा।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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