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________________ (१२४३ ) की बेटी है। चोरी का हमारा धंधा है। हमारे यहां ये आदमी को मैं अपनी चतुराई से इस.गढ में ढकेल कर जान ले लेती है। यही मेरा नित्य का काम है। उसी स्त्री के द्वारा सच सच बता देने पर कुमार ने उसे छोड़ दी। बाद वह चोर के पास पहूँचकर उसे ऐसा धमकाया कि चोर मारे डर के थर थर कांपने लगा। चोर की इस हालत को देख दयालु कुमार ने कहा देखो ! अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है अगर तुम अपने जीवन का उद्धार चाहते हो तो इस चौर्य-कर्म को छोड़ दो और कहीं अन्यत्र जाकर बुरे कर्मों के त्याग से शनैः शनैः अच्छे कर्मों को करते हुए संसार में यश के भागी बनो । कुमार के हितैषी उपदेश को सुन कर चोर को चौर्य वृत्ति से घृणा होगई और अपनी पुत्री को लेकर वह कहीं अन्यत्र चला गया । चोर के चले जाने पर कुमार ने उस खोह के मुख-द्वार पर एक बड़ा भारी शिला खण्ड रख दिया । उसमें जाने आने का रास्ता ही रोक दिया। उस रात्री में कुमार श्रीचन्द्र किसी पेड़ के नीचे पहुंच कर सो गया । सुख से नींद ली। बड़े सवेरे उठ गया,
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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