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________________ ( २४१ ) कुतूहल-प्रिय कुमार ने उसकी बात मंजूर करली। उसके कथनानुसार उस बोके को उठाकर उसके साथ २ चला । चलते २ दोनों एक पहाड़ की बड़ी भारी खोह के अन्दर घुसे, और थोडी ही दूर जाकर एक भोयरे में उतर गये । उस भूमि-गृह में दीपक जयमगा रहे थे । स्थान २ पर रत्न जटित पलंग, कुर्सियां, आराम-कुर्सियां और चौकियां पड़ी थी । जगह २ भूले पडे हुए थे। भिन्न २ प्रकार के खेलों के सामान तथा अनेक तरह के मनोरंजन के साधन वहाँ पर विद्यमान थे । ढेर-के ढेर-रत्न वहाँ पर पड़े हुए थे। मनमोहक वस्तुओं से स्थान सुसजित हो रहा था। जिसके आगे राजमहल की शोभा भी फीकी लग रही थी जिसे देख देख कर कुमार चकित हो रहा था। एक स्थान पर रुक कर चोर ने भार को नीचे उतारने का आदेश दिया। कुमार ने बोझा अपने सर से उतार कर रख दिया, और वहीं बैठ कर विश्राम करने लगा। कुमार वहाँ आराम कर ही रहा था कि एक सुन्दर रमणी वहाँ आई और चोर को प्रणाम किया। यह देख कर कुमार बहुत ही विस्मित हुआ। ___ चोर ने कहा-" पुत्रि ! तुम इस. मेहमान का आदर सत्कार करो । यह सुनकर वह रमणी कुमार को
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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