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________________ (२३८ ) --मारागया.था। मेरी मृत्यु का कारण बजखर नाम का एक चौर था.।मैंने उसका पता लगाकर उसको पहले ही मार दिया है। कुण्डलगिरि के मुख्य शिखर की गुफा : में उसका गुप्त कोष रत्नसुवर्णादि से परिपूर्ण सुरक्षित पडा है । आप वहां चलकर उसे ग्रहण कीजिए। राक्षस के कथनानुसार राजा श्रीचन्द्र ने वहाँ जाकर उस कोष को अपने अधिकार में कर लिया । वहाँ स्वर्ग से भी बढकर सुन्दर चन्द्रपुर नाम का एक विशाल नगर बसाया। उस नगर के मध्य में एक भव्य यक्ष-मंदिर बनवा कर उस में चौर की छाती पर खडी उस राक्षस की एक पाषाण प्रतिमा प्रतिष्ठित की तथा उस राक्षस को "नरवाहन " यक्ष के नाम से प्रसिद्ध किया । बाद में कुमार कुण्डलपुर लौट-आया और राज्य की सुव्यवस्था करने में लग गया। .
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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