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________________ ( )) कुमार के पैर छमें के लिए अपसे हाथ बढाय को ही कुमार ने उसका आदर करते हुए उसे घड़े सद्भाव के साथ अंपने पास शय्या पर बिठा लिया। परस्पर क्षमायांचना करके घुल मिलकर बातें करने लगे। ___ राक्षस ने कहा-कुमार ! आपके इस वीरोचित उदार' व्यवहार से मैं बहुत प्रसन्न हुआ हूँ। मैं आपकी क्या सेवा करू १ कुमार ने कहा- देव ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो आप इस प्राणी-हिंसा के पाप को छोड़कर, जीवों पर दया किया करो। आपको भी परोपकारी होना चाहिए । इन रानियों की कैद तोड देना चाहिए। इस उजड़े नगर को फिर से बसा देना चाहिए । राक्षस ने इन सब बातों को बड़े प्रेम से स्वीकार किया और कुमार को अपने धर्म-गुरु के समान मानता हुआ प्रसन्नता से कहने लगा-हे महापुरुष ! आप इस कुण्डलपुर के स्वामी होकर, इसका उद्धार कीजिये। आपके पुण्य-प्रताप से यह देश और नगर पुनः हराभरा धन-जन से परिपूर्ण तथा समृद्धिशाली बन सकेमा, दूसरे से नहीं। अतः आप मेरी इस प्रार्थना को स्वीकार: कीजिये।
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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