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________________ RANI .. . . . र माश्रीन्द्र भी पड़ा उसेपायीको उतर कर इच्छित दिशा की ओर रवाना हुयाः) पूर्णजन्म में किये हुए पुण्य के प्रभाव से सारी सम्पतियां उसे प्राप्त थी। गुटिका के प्रभाव से मुश्किल से मुश्किल काम भी आसानी से पूर्ण होत थे । एक दिन विश्राम के लिये किसी मुसाफरखाने में वह ठहरा हुआ था। तब वहां बहुत से पथिक ठहरे हुए थे। कुमार उनके वर्तालाप को सुन रहा था कि-एक वैतालिक–चारण ने गाना शरु किया- पायरे कुसत्थलम्मि-पुह वीस-पयावसिंह-कुलचन्दो । सिरि सूरियवइ तणो, सिरिचंदो जयउभुवणयले ।। राहावेह-विहीए, सयंवर वरिप्रो य तिलयमंजरीए । सव्व-निव-गवव-हरणो, वीरिक्को जयउ सिरिचन्दो । 'सिंहपरवर नरेसर-सुहगंग-सुइ पुव्व भवनेहा । पउर्मिणि चन्दकलाए-परिणीओ जयउ मिरिचंदो ॥ . अर्थात्-कुशस्थल नगर के स्वामी महाराजा-प्रतापसिंह के कुल मा चन्द्रमा के जैसे, महारानी श्री सूर्यवतीजी के पुत्र श्री चन्द्रकुमार की संसार में जय हो। राधावेध की साधना से तिलकपुर की राज कन्या तिलकमंजरी ने जिसे स्वयंवर मण्डप में वरमाला पहिना दी। ऐसे सब राजाओं में गर्ष की हरण करने वाले सुभटशिरोमणि कुमार श्री चन्द्र की जय हो । सिंहपुर के स्वामी श्री शुभगांग राजा . .
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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