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________________ of एक दिन चलते चलते रात होगई। आसपास किसी बस्ती का प्रसार में देख कुमार ने उनी जंगल में रात विताले की ठामी । वह एक वृक्ष पर चढ गया। चारों तरफ छिटकी हुई चांदनी को देखने लगा। यह टकटकी लगाए शारदीय शशी की शोभा को निहार रहा था कि सहसा उसके मुंह से निकल पड़ा .. ताराम्सए-प्रचुर-भूषणमुद्वहन्ती मेघावरोध, परिमुक-शशाङ्क वक्त्रा । ज्योत्स्ना दुकूलममल रजनी दघाना ।। वृद्धि प्रयात्यनुदिनं प्रमदेव बाला ॥ अर्थात्-नक्षत्र रूपी अनेक आभूषणों को पहने हुई, बादलों के हट जाने से चन्द्रमा रूपी मुख को स्पष्टतया प्रकट करती हुई, चांदनी रूप दुपट्टा धारण की हुई यह रात्रि रूप बाला, प्रमदा की तरह दिन ब दिन बढ रही हैं। उस समय अचानक उसका ध्यान पृथ्वी पर चलती हुई कोई छायामात्र मनुष्य की तरफ आकर्षित हुआ । उसने मन में सोचा कि यहां साधारण तया मनुष्य नहीं श्री सकते हैं ! हो न हो यह कोइ सिद्ध पुरुष ही है। हैं ! यह चोझा लाद कर कहां जारहा है इसे जरूर ज्ञात करना चाहिए । अतः कुमार ने उसके पीछे २ चलना शुरू कर
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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