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________________ ( १९७ ) हूँ तथा मेरा स्त्री धर्म भी मुझे बार बार प्रेरित कर कहता है कि-मैं छाया की तरह सदा आपके साथ साथ बनी रहूँ । सीता जैसी धीर और महान् नारी भी पतिवियोग के समय क्या कहकर रामको उसे साथ ले जाने के लिए प्रेरित करती हुई कहती हैं कि : जब लगि नाथ, नेह अरू नाते, पिय धिन तिय हिं तरणि ते ताते । भोग रोग सम, भूषण भारू, नरक यातना सरिस संसारू । . हे स्वामिन् ! जबतक आप हैं तबतक कुटुम्बियों से प्रेम और-रिश्ता नाता है। पति के बिना स्त्री को वे सब सूर्य से भी बढकर तपाने वाले हो जाते मैं, भोग रोग के समान तथा गहने भारभूत हो जाते हैं, और यह सारा संसार नरक के कष्टों की तरह बड़ा दुखःद बन जाता है। अतः स्त्री संसार में माता पिता आदि के वियोग के दुःख को सहन कर सकती है परन्तु पति के वियोग को क्षणभर भी नहीं सह सकती । नाथ ! मै आपको ही पूछती हूं कि क्या सीता राम के साथ वन में नहीं गई ? क्या नल के साथ दमयन्ती वन वन भटकती नहीं फिरी ? क्या द्रौपदी ने पाएडवों के
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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