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________________ ( १८५ ) अपने मनो विचारों के अनुकूल बनने की वह सोच रहा था । ऐसे प्रसंग मे वहां उसका अभिन्न-मित्र गुणचन्द्र भी पहुँच जाता है । दोनों आपस में कोई बात छिपाते नहीं थे। जो बात श्रीचन्द्रकुमार को दूसरे आदमी नहीं कह सकते थे, वह बात गुणचन्द्र के द्वारा कुमार के पास पहुंच जाती थी। आज भी ऐसी ही एक घटना को लेकर कुमार के पास गुणचन्द्र पहूँचा है। अपने विनीत-विचारों को बड़ी . गंभीरता से वह कुमार के सामने रखता है माननीय कुमार ! पिताजी के उस समय के वचनों को सुन कर गायक वोणारव ने मेरे द्वारा आपसे प्रार्थना कर वाई है, कि मैंने जयकुमार आदि राज-कुमारों की सिखावट से ही रथ और घोड़ों की मांगनी की थी। मैं राज-कुमारों के पास नहीं जाउंगा। आप कृपा करके दान किया हुआ रथ मुझ से लेलें, और उसके बदले में यथायोग्य सुवर्ण प्रदान कर दें। आप को रथ दान का बडा मारी फल तो प्राप्त हो ही चुका है। गायक वीणारव उस रथ को और घोड़ों को वापस आपही को बेचना चाहता है । आप सारे संकोचों को छोड़ कर इस बात को मान लें । वह कहता है, हमतो आपके याचक हैं. और रहेंगे । आपने जितना दान दिया है, उतना और कौन
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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