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________________ ( ४ ) रहा है। सभी वृक्ष फलित और कुसुमित हो रहे हैं। क्योंकि आजकल ऋतुराज बसन्त का आगमन हो रहा है, और प्रातः कालीन मन्द सुगन्धमय वायु ने उसके रूप सौन्दर्य एवं मधुरिमा को द्विगुणित कर दिया है, मानों अति मधुर रसालरस में अमृत घोल दिया हो , और उधर देखियें ! उस ऊँचे पाम वृक्ष पर बैठी कोयल पंचम स्वर में पालाप लेती हुई प्रकृति को मुखरित बना रही है। जरा इधर भी दृष्टिपात करिये ! पुष्पों वाले पौधों की ओर मधुकरों के समूह सुमनों की मधुर गन्ध से आकर्षित हो लपके चले जारहे हैं। ..। वह सामने ऊँचा अशोक वृक्ष है, उसके अधो-भाग में तपोधन महामुनियों से घिरे हुए देवरचित स्वर्ण कमल पर भगवान् महावीर के प्रथम गणधर उज्ज्वल गौरवर्ण भव्य शरीर प्रशस्त ललाट और शान्त मुख मुद्रा वाले भगवान् इन्द्रभूति गौतम स्वामी विराजमान है । अहा कैसी पवित्र मूर्ति है। त्याग और तप ही जैसे शरीर धारण किये बैठा हो। उनके पुनीत पादपों के निकट ही वैशाली के गणतन्त्राधिपति परमाहत महाराजा चेटक नम्रभाव से बैठे हैं । पास ही उनका परिवारवर्ग एवं नगर निवासी गण अपने २ योग्य स्थानों पर बैठे हैं। ...
SR No.022727
Book TitleShreechandra Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinharisagarsuri Jain Gyanbhandar
Publication Year1952
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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